यथार्थ सत्य -23-Nov-2022

प्रतियोगिता

दिनांक -23-11-२०२२
विषय - स्वैच्छिक
विधा - गीत
शीर्षक - यथार्थ सत्य 

गीत

यह कविता नही यथार्थ है।
ज्ञानी का ज्ञान निस्वार्थ है।
समझदार भी समझ न पाते,
न जाने यह कैसा स्वार्थ है ।
1+
अगर सत्य नर जान ये जाये।
परम ब्रह्म के दर्शन पाये।
परमहंस हो जाये जग में,
जनम मरण से मुक्ति पाये।
माया के इस महामोह में, 
सबको समझाना अकार्थ है।
2-
धन साधन है केवल तन का।
पालक पोषक कुत्सित तन का 
कोई लाख जतन कर डाले,
मुक्ति मार्ग न आराधन का ।
अर्थ अनर्थ न करने पाये,
अर्थ के भी तो अनेकार्थ हैं।
3-
शून्य आदि और शून्य अंत है ।
शून्य को समझा वही संत है।
शून्य की महिमा शून्य ही जाने,
शून्य शून्य अरू शून्य अनंत है।
जीवन के इस अंक गणित में,
शून्य का प्रतिफल परमार्थ है।
4-
राम की माया राम ही जानें।
या कि राम से भी हो स्यानें।
हम तो चरण शरण अशरण की
अपना ले जानें  अनजानें।
दीन हीन है सदा विनोदी, 
ना हीं सुदामा ना हीं पार्थ है।

विनोदी महाराजपुर

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6 Comments

उत्कृष्ट रचना

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Sushi saxena

23-Nov-2022 06:13 PM

Nice

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Haaya meer

23-Nov-2022 05:35 PM

Superb 👍

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